About Book / बुक के बारे में
Pustak Ka Naam / Name of Book -----हरिवंश पुराण | Harivansh Puran |
Pustak Ke Lekhak / Author of Book -----मज्जिनसेनाचार्य | Majjin Senacharya |
Pustak Ki Bhasha / Language of Book ---- HINDI | हिंदी |
Pustak Ka Akar / Size of Ebook -----58 MB |
Pustak me Kul Prashth / Total pages in ebook - 512 |
prakasan ki thithi/ Publication Date ----- 1914 |
Download Sthiti / Ebook Downloading Status -- Best |
Summary of Book / बुक का सारांश
हरिवंशपुराण में तीन पर्व (हरिवंशपर्व, विष्णुपर्व तथा भविष्यपर्व) तथा ३१८ अध्याय हैं।
हरिवंशपुराण के भविष्यपर्व में पुराण पंचलक्षण के सर्गप्रतिसर्ग के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति, ब्रह्म के स्वरूप, अवतार गणना और सांख्य तथा योग पर विचार हुआ है। स्मृतिसामग्री तथा सांप्रदायिक विचारधाराएँ भी इस पर्व में अधिकांश रूप में मिलती हैं। इसी कारण यह पर्व हरिवंशपर्व और विष्णुपर्व से अर्वाचीन ज्ञात होता है।
विष्णुपर्व में नृत्य और अभिनयसंबंधी सामग्री अपने मौलिक रूप में मिलती है। इस पर्व के अंतर्गत दो स्थलों में छालिक्य का उल्लेख हुआ है। छालिक्य वाद्यसंगीतमय नृत्य ज्ञात होता है। हाव भावों का प्रदर्शन इस, नृत्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। छालिक्य के संबंध में अन्य पुराण कोई भी प्रकाश नहीं डालते।
विष्णुपर्व (91 26-35) में वसुदेव के अश्वमेघ यज्ञ के अवसर पर भद्र नामक नट का अपने अभिनय से ऋषियों को तुष्ट करना वर्णित है। इसी नट के साथ प्रद्युम्न, सांब आदि वज्रनाभपुर में जाकर अपने कुशल अभिनय से वहाँ दैत्यों का मनोरंजन करते हैं। यहाँ पर “रामायण” नामक उद्देश्य और “कौबेर रंभाभिसार” नामक प्रकरण के अभिनय का विशद वर्णन हुआ है।
There are three festivals (Harivanshparva, Vishnuparva and Bhavishparva) and 316 chapters in Harivanshpuran.
According to the Sarvapratisarga of Purana Panchalakshan in the future of Harivanshpurana, the origin of the universe, the form of Brahm, incarnation calculation and Samkhya and Yoga have been considered. Souvenirs and communal ideologies are also found in most of the festivals. For this reason, this festival is known from Harivanshaparva and Vishnuparva.
Dance and acting material is found in its original form in Vishnuparva. Bhalikya is mentioned in two places under this festival. Bhalikya instrumental musical dance is known. The performance of Hav Bhava occupies an important place in this, dance. Other Puranas do not throw any light in relation to bhalikya.
On the occasion of Vasudeva’s Ashvamegh Yajna in Vishnuparva (91 26-35), a nut named Bhadra is described to appease the sages by his act. With this nut, Pradyumna, Samb etc. go to Vajranabhpur and entertain the demons there with their skillful acting. Here the purpose called “Ramayana” and the episode “Kauber Rambhabhisar” are described in a vivid manner.
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About Writer / लेखक के बारे में
हारवापुराण
४. वीर जयवराह
यह पश्चिममें सौरोंके अधिमण्डलका राजा था। सौरोंके अधिमण्डलका अर्थ हम सौराष्ट्र ही समझते हैं जो काठियावाड़के दक्षिणमें है। सौर लोगोंका राष्ट्र सौर-राष्ट्र या सौराष्ट्रसे बढ़वाण और उसके पश्चिमको ओरका प्रदेश ही ग्रन्थकर्ताको अभीष्ट है।
यह राजा किस वंशका था इसका ठीक पता नहीं चलता। हमारा अनुमान है कि यह चालुक्य वंशका कोई राजा होगा और उसके नामके साथ ‘वरआह’ का प्रयोग उस तरह होता होगा जिस तरह कि कीर्तिवर्मा (द्वितीय) के साथ महावराहका। राष्ट्रकूटोंसे पहले चौलुक्य सार्वभौम-राजा थे और काठियावाड़पर भी उनका अधिकार था। उनसे यह सार्वभौमपना श. सं. ६७५ के लगभग राष्ट्रकूटोंने ही छीना था, इसलिए बहुत सम्भव है कि हरिवंशकी रचनाके समय सौराष्ट्रपर चौलुक्य वंशको हो किसी शाखाका अधिकार हो और उसीको जयवराह लिखा हो । सम्भवतः पूरा नाम जयसिंह हो और वराह विशेषण।
. प्रतिहार राजा महीपालके समयका एक दानपत्र हड्डाला गांव ( काठियावाड़) से श. सं. ८३६ का मिला है । उससे मालूम होता है कि उस समय बढ़ वाणमें धरणीवराहका अधिकार था, जो चावड़ा वंशका था और प्रतिहारोंका करद राजा था। इससे एक संभावना यह भी है कि उक्त घरणीवराहका ही कोई ४-६ पीढ़ी पहलेका पूर्वज उक्त जयवराह रहा हो। [७] हरिवंशका रचनाकाल
जिनसेनाचार्यने अन्तिम सर्गके ५२वें श्लोकमें हरिवंशका रचनाकाल शक संवत् ७०५ लिखा है जो वि. सं. ८४० होता है । जिनसेनने अपने ग्रन्थको रचनाका समय मात्र शक संवत्में लिखा है जब कि हरिषेणने कथाकोशका रचनाकाल लिखते समय शक संवत्के साथ वि. सं. का भी उल्लेख किया है। उत्तरभारत, गुजरात और मालवा आदिमें वि. सं. का और दक्षिणमें शक संवत्का चलन रहा है। जिनसेनको दक्षिणसे आये हुए एक-दो पीढ़ियां ही बीती थी इसलिए उन्होंने अपने ग्रन्थमें शक संवत्का हो उल्लेख किया है, परन्तु हरिषेणको काठियावाड़में कई पीढ़ियाँ बीत गयी थी इसलिए उन्होंने वहाँको पद्धतिके अनुसार साथमें वि. सं. का देना भी उचित समझा।
“The ultimate goal of human life is to transcend culture and personality to the unconditioned pure being. But the means to do this is through our culture and way of life.” – David Frawley
“मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य संस्कृति और व्यक्तित्व को बिना शर्त शुद्ध अस्तित्व तक पहुंचाना है। लेकिन ऐसा करने का साधन हमारी संस्कृति और जीवन शैली है।” — डेविड फ्रॉली