About Book / बुक के बारे में
Pustak Ka Naam / Name of Book -----चंद्रगुप्त मौर्य | Chandragupt Maurya |
Pustak Ke Lekhak / Author of Book ----- #### |
Pustak Ki Bhasha / Language of Book ---- HINDI | हिंदी |
Pustak Ka Akar / Size of Ebook -----5.5 MB |
Pustak me Kul Prashth / Total pages in ebook - 176 |
prakasan ki thithi/ Publication Date ----- #### |
Download Sthiti / Ebook Downloading Status -- Best |
Summary of Book / बुक का सारांश
चंद्रगुप्त मौर्य (शासनकाल: 321–297 ईसा पूर्व) प्राचीन भारत में मौर्य साम्राज्य के संस्थापक थे। उन्हें दार्शनिक चाणक्य द्वारा पढ़ाया और परामर्श दिया गया था, जिनका उनके साम्राज्य के निर्माण में बहुत प्रभाव था। चंद्रगुप्त और चाणक्य ने मिलकर भारतीय उपमहाद्वीप पर सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक का निर्माण किया। प्राचीन ग्रीक, हिंदू, बौद्ध और जैन ग्रंथों में चंद्रगुप्त के जीवन और उपलब्धियों का वर्णन किया गया है, लेकिन वे काफी भिन्न हैं। प्राचीन ग्रीक और लैटिन खातों में, चंद्रगुप्त को सैंड्रोकोटोस या एंड्रोकोटस कहा जाता है।
Chandragupta Maurya (reign: 321–297 BCE) was the founder of the Maurya Empire in ancient India. He was taught and counseled by the philosopher Chanakya, who had great influence in the formation of his empire. Together, Chandragupta and Chanakya built one of the largest empires on the Indian subcontinent. Chandragupta’s life and accomplishments are described in ancient Greek, Hindu, Buddhist, and Jain texts, but they vary significantly. In Ancient Greek and Latin accounts, Chandragupta is referred to as Sandrokottos or Androcottus.
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About Writer / लेखक के बारे में
हमारे देशके इतिहासमें मौर्य-कालका वृत्तांत स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है। उसी कालमें प्रथम बार बंगालकी खाड़ीसे अरबके समुद्रतक फैला हुआ __ हमारा देश एकच्छत्र राज्यके अन्तर्गत हुआ। इतिहासके पढ़नेवालोंको इस का
लका वृत्तान्त अति रुचिकर है। क्यों कि हमारे देशके यालाबद्ध इतिहासके न होने पर भी मौर्यवंशके राजत्वकालका इतिहास प्रामाणिक रूपसे पाया जाता है। यहाँतक कि तत्कालीन सामाजिक, राजनैतिक और धार्मिक व्यवस्थाका भी यथेष्ट विवरण उस समयकी पुस्तकोंमें मिलता है। कौटिल्यकृत अर्थशास्त्रके पढ़नेसे इस व्यवस्थाकी आन्तरिक दशा पर भी प्रकाश पड़ता है और उस समय न्यायकार्यों में सर्वसाधारण जनताके विचारों और मतोंका कितना आदर किया जाता था, राजकीयसभाद्वारा निर्मित होने पर भी उक्त न्यायोंका अन्तिम
आधार सर्व साधारणका मत ही था, इसका भी पता उसी पुस्तकसे चलता है। __ ऐतिहासिक दृष्टिको छोड़कर देशभक्तिकी दृष्टिसे भी मौर्यवंशका काल हमारे देशके इतिहासमें बड़े गौरवका समय था। यूनानी आक्रमोंसे देशकी रक्षा करके विदेशों पर भारतवर्षका आतंक बैठाना, अर्वाचीन इतिहासमें प्रथम बार भारतवर्षकी सीमाको काबुल और हिरात तक फैलाना, देशके ऐश्वर्यके कुछ अप्रधान प्रमाण नहीं हैं। उन दिनोंके इतिहासको पढ़कर आज भी हृदयमें देशभक्ति उमड़ आती है।
उक ऐतिहासिक कालके केन्द्र महाराज चन्द्रगुप्त थे । संसारके अन्य महान् पुरुषोंकी भाँति उनको भी अपने जीवनमें अनेक कठिनाइयाँ झेलनी पड़ी थी, बहुतसे विनोंका सामना करना पड़ा था। पिताकी मृत्युके अनन्तर पाटलिपुत्रसे निर्वासित हो, नवयुवक चन्द्रगुप्त बहुत दिनों देश विदेश घूमा किया और इसी भ्रमणावस्था इसकी मेद विकन्दरशाहसे हुई |
“The biggest guru mantra is: Never share your secrets with anybody. It will destroy you.” – CHANAKYA
“सबसे बड़ा गुरु मंत्र है: कभी भी अपने रहस्य किसी के साथ साझा न करें। यह तुम्हें नष्ट कर देगा।” – चाणक्य